अनादर
विषय:अनादर
वो एक विधाता सब का है
चाहे मानो किसी रूप में तुम
उसके सामने कुछ चाल नही चलती
कोई चाल नही, जिसे तुम चल जाओगे
वो ही तो भाग्य विधाता हैं सर्वज्ञाता हैं
चाल,भूचाल वही चलता है मर्जी उसकी होती हैं
तू मानव हैं भूचाल कैसे सम्भाल पाओगे
उसके सामने तुम कुछ न कर पाओगे
मौन मेरा प्रेम था जो तेरे लिए दिखावा रहा
उसको मौन का भी अहसास होता हैं
उसको सभी ज्ञात होता हैं वही तो विधाता हैं
तुम स्वयं तो कुछ भी न कर पाओगे
मुझे तुम अपमान की सूली ना चढा पाओगे
वो ही तो पालनहार हैं हम सबका
यदि अपमान किया उस माँ का जिसका
तिरस्कार त्रिदेव ना कर सके स्वंय
क्या जीके करना ओ इन्सान तू बस यही से तेरी दुर्गति रही
जो इन्सान के रूप में भगवान को पहचान न सके
माँ का अपमान बस घमंड में कर बैठे।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद