अनमोल जीवन
गीत
जीवन ये अनमोल मिला है, जमकर जीते जाना है।
कर्मनिरत होकर हरपल ही, दुनिया को दिखलाना है।
तन बूढ़ा होता कितना भी, मन बूढ़ा कब होता है।
हार मानकर जो भी बैठा, आजीवन वह रोता है।
एक ककहरा शुरू किया तो, खड़िया चलता जाता है।
सौ से शून्य, शून्य से सौ तक, समय चक्र उलझाता है।
जितना समय मिले जीवन को, इंच-इंच जीना होगा।
सुख की कलियाँ कम पड़ जाएँ, हँसकर गम पीना होगा।
कभी अकारण चैन न खोना, जीवन के गलियारे से।
दूर सदा ही मन को रखना, चिन्ता के अँधियारे से।
वक़्त गिनें मत अँगुली-अँगुली, सारे कर्म सजा डालें।
फिर ये जीवन कहाँ मिलेगा, अपना फर्ज निभा डालें।
डॉ. छोटेलाल सिंह मनमीत