अनमोल आँसू
अनमोल आँसू
************
प्रिये, यह आँसू नहीं
यह शबनम है
पलकों से निकल
जब भिगोता है
खुशियों के आँचल…
यह है खत्म हुए इंतिज़ार की
मीठी सी पहल …
समुद्र के पानी सा
खारा है,
जब मायूसी और वेदनाओं
की खुरदरी जमीन पर
ढुलक जाता है
आंखो की कोरों से फिसल….
प्रिये, आंसुओं को यूं
जाया न करो
ये प्रेम है
ये साथ है
ये आस्था है
ये विश्वास है
ये है गठ बंधन
यह शक्ति की पहली इकाई है
गले मिलने के साथ याद भिगो दे कांधा
तो यह वर्षों से बिछड़ा कोई सगा है
कहीं जाए न ये
आंखो की कोरों से फिसल
प्रिये, अमीरी का उत्सव है ये
कभी है गरीब का कल ,
कभी आँसू दुख निराशा दर्शाता है
कभी आह्लादित खुशियों के पल ।
– अवधेश सिंह