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17 May 2016 · 1 min read

अनकही बातें

कहने को यूँ दिल में थीं
होंठों पर ठहरी हुईं
कुछ अनकही बातें

लफ़्ज़ों में पिरोई हुई
कागज़ पर उतरी नहीं
हुईं दफ़न सीने में कही
कुछ अनकही बातें

ख्वाबों के सहारे चलते रहे
हम उनसे मिलते बिछड़ते रहे
कई बार कहने को हुईं
पर भीड़ में कहीं दब सी गयीं
कुछ अनकही बातें

सोचता हूँ स्याही का रंग देकर
कागज़ पर उकेरता रहूँ
कि उन तक पहुंचे खतों में कभी
मेरी अनकही बातें

–प्रतीक

Language: Hindi
1 Comment · 803 Views
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