अनकहा
जिंदगी में बहुत कुछ कहा
जिंदगी में बहुत कुछ सुना
फिर भी कुछ अनकहा रहा
इस कहे और अनकहे के
बीच एक है दरार
जिसे पाटती है मेरी कविता
जो सत्य और असत्य को समझती है
जो आंखों से नहीं
दिल से आदमी को पढ़ती है
इस अनकहे से ही
मेरी कविता बनती है
मधु शाह