अनंत की ओर _ 1 of 25
अनंत की ओर
बहुत कुछ है जो ,बड़ा अजीब लगने लगा
दुनियाँ दारी ये मन , भीड से डरने लगा …
किनारों का मोह ना, सहारों की चाह रहीं
में तो बेफिक्र थी , समन्दर सिहरने लगा …
दौड़ रहीं है दुनियाँ, नम्बरों की होड़ में ,
मेरा प्यारा सा मन , शुन्य में ठहरने लगा …
ज़िन्दगी भर जिस , अंधेरे का ड़र था ,
साथ वो अंधेरा , परछाई सा चलने लगा …
उलझी रही ज़िन्दगी ,यूँ ही आस – पास ,
सोच का दायरा , अनंत को बढ़ने लगा ….
– क्षमा ऊर्मिला