अध्यापक
मिट्टी के ढेलों को जिसने,
बर्तन में बदला हर बार।
कितनी भी सख्त हो मिट्टी,
पर मानी ना उसने हार।
एक हाँथ में छड़ी थी जिसके,
हाँथ में दूजी लिए किताब।
हरदम हमको राह दिखाया,
सुन्दर भविष्य के देके ख्वाब।
पत्थर के टुकड़े थे हम तो,
हीरा उसने बना दिया।
छोटे छोटे पौधे थे हम,
सींच उसी ने बड़ा किया।
अनुशाशन की मार कहो या,
प्यार दुलार का कहो परिणाम।
जीवन के हर मोड़ पर हमको,
मिली तरक्की के नए आयाम।
ऋणी रहेंगे हम उसके हरपल,
जीवन में उसका असर है व्यापक।
माँ बाप का स्थान सबसे ऊँचा,
पर उसके बाद आता अध्यापक।