*अध्यात्म ज्योति* : वर्ष 53 अंक 1, जनवरी-जून 2020
अध्यात्म ज्योति : वर्ष 53 अंक 1, जनवरी-जून 2020
[ संपादन कार्यालय ]
श्रीमती जी .के. अजीत 61 टैगोर टाउन इलाहाबाद 211002 मोबाइल 99369 17406
डॉ. सुषमा श्रीवास्तव एफ -9 ब्लाक, तुल्सियानी एंक्लेव , 28 लाउदर रोड इलाहाबाद 211002
मोबाइल 94518 43915
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समीक्षक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रतिनिधि थियोसॉफिकल पत्रिका अध्यात्म ज्योति का वर्ष 53 अंक 1 प्रयागराज से प्रकाशित जनवरी-जून 2020 मेरे समक्ष है। 48 प्रष्ठीय इस पत्रिका में आध्यात्मिक सामग्री है ,जो पत्रिका के घोषित लक्ष्य जनमानस में आध्यात्मिक चेतना का विकास तथा साहित्य द्वारा विश्व बंधुत्व का वातावरण को सही ठहरा रही है। पत्रिका की संपादिका ज्ञान कुमारी अजीत तथा डॉ. सुषमा श्रीवास्तव हैं।
संपादकीय में ज्ञान कुमारी अजीत ने समय के सदुपयोग पर प्रकाश डाला है तथा पुनर्जन्म के महत्व को रेखांकित किया है ।आपने लिखा है “यदि स्पष्ट रूप से हमें ज्ञात हो जाए कि मृत्यु के बाद हमारे अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार हम पृथ्वी पर जन्म लेकर आएँगे तो सांप्रदायिक मतभेद न होगा ,जाति धर्म का भेदभाव मिट जाएगा तब विश्व एक महान मानव कुटुंब बन सकता है । ”
मनोमालिन्य एक विषाक्त अंतर्धारा विषय पर डोरा कुंज एवं एरिक द्वारा लिखित लेख का अनुवाद पी एस मित्तल द्वारा किया गया है । इस घातक विकार पर गहराई से प्रकाश डाला गया है । लेखक ने ठीक ही लिखा है कि “मनोमालिन्य अभिव्यक्त क्रोध की अपेक्षा अधिक घातक है क्योंकि यह दीर्घकाल तक दबे रूप में रहता है ।”( प्रष्ठ 7 )
विचार शक्ति के महत्व से लगभग सभी लोग परिचित हैं । हम जैसा सोचते हैं ,वास्तव में वैसे ही हो जाते हैं । इसी विषय पर एक लेख है जिसमें बताया गया है कि पर्याप्त शक्तिशाली विचार संपूर्ण मानसिक शरीर को कंपित कर देता है ।जब हम एक ही विचार को दोहराते हैं तो हमारे मानसिक शरीर को उसी प्रकार के कंपनो की आदत पड़ जाती है और इस प्रकार हम आसानी से उसी विचार को पुनः दोहराते रहते हैं ।(पृष्ठ 15 , संकलनकर्ता विपुल नारायण सत्य मार्ग लॉज )
एक लेख प्रोफेसर गीता देवी का है, जिसमें उन्होंने प्राचीन काल में अध्यात्म में महिलाओं का योगदान विषय पर प्रकाश डाला है । इसमें याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेई तथा याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने वाली गार्गी का उल्लेख है। ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया , गांधारी आदि अनेक प्रसिद्ध महिलाओं का उल्लेख है जिन्होंने अपने- अपने समय में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई ।
आध्यात्मिक संस्थाएँ और शोषण विषय से लिखा गया रोहित मेहता का लेख (अनुवाद डॉ. सुषमा श्रीवास्तव) प्रारंभ में तो आकर्षण पैदा करता है तथा पाठकों के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि देखें आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा जो शोषण किया जाता है वह किस प्रकार से होता है तथा उससे बचने का क्या उपाय है लेकिन फिर लेख अपनी ही भाषा – शैली के उलझाव में फँसकर रह जाता है।
प्रोफेसर पी कृष्णा द्वारा लिखित तथा हरिओम अग्रवाल रामपुर द्वारा अनुवादित लेख क्या बिना टकराव के संबंध स्थापित हो सकते हैं ? द्वारा अपने आप में एक महत्वपूर्ण विषय उठाया गया है। इसका निष्कर्ष यही है कि हमें मित्रता के भाव से संबंध स्थापित करने चाहिए ,तब संघर्ष अथवा टकराव की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी। लेखक ने खलील जिब्रान के इस कथन को उद्धृत सही ही किया है कि “मित्रता का कोई उद्देश्य नहीं है, सिवाय अंतरात्मा की गहराई में आने के ।”
कवर पेज पर थियोसॉफिकल सोसायटी के तृतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष (1934 से 1945) जॉर्ज सिडनी अरुंडेल का सुंदर चित्र है। पत्रिका के अंत में थियोसॉफिकल सोसाइटी की विभिन्न शाखाओं द्वारा की जाने वाली गतिविधियों की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रकाशित है। पत्रिका का प्रकाशन शानदार है तथा संपादक मंडल बधाई का पात्र है।