अधूरे ख्वाब
नज़्म – अधूरे ख्वाब
मुकव्वल कौन से हमने,
ख्बाव कर रखे थे।
पहले से ही तय उसने,
जवाब कर रखे थे।
सजदे में सर झुकते रहे यारों,
पथ जो थे रूकते रहे यारों,
उलाहने हजारों किताब कर रखे थे।
रोज झगड़े भी होते रहे यारों,
हम पाकर भी सब कुछ खोते रहे यारों,
आंखों को दरिया ए सैलाब कर रखे थे।
हजारों बहाने हजारों झूठे वादे थे,
हमें डूबा खुद तैरने के इरादे थे,
फिर भी हमने वादे मेहताब कर रखे थे।
कौन समझते, जानते ज़रा सा,
मैं शख्स था कुछ जिंदा,मरा सा,
मेरी सांसों के भी तो हिसाब कर रखे थे।
इम्तिहान के दौर में पड़े हैं यारों,
आगे कुआं पीछे खाई पर खड़े हैं यारों,
जानबूझकर ही दिन खराब कर रखे थे।
अब संभले हैं चलें हैं हम यारों,
कश्तियां भी जाने लगी हैं किनारों,
बस मंजर ए इश्क नवाब कर रखे थे।
पहले से ही तय उसने जवाब कर रखे थे।।
रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’