अधूरी कहानी!
एक छोटी सी अधूरी कहानी….
पुरानी हवेली की दरारों सी……
कुछ अधखुली किताबें,
कुछ सियाही,
कुछ सफे….
आज पीले हुए इन पन्नों पर….
तब ना जाने कितने ‘नए गुलाब’ ‘आया जाया’ करते थे….
आमने से सामने के मकानों में…
इन ‘बंद किताबों’ में होकर….
आज एक दोस्त ने बताया, “इन दिनों वो घर आयी है…. दीवाली की छुट्टियों में….
और बस यूं ही, कितने दिनों के बाद फिर, इत्र ढुल गया…….
“जिंदगी से यही गिला है मुझे,
वो मिला तो है पर, नहीं मिला है मुझे…..
© 2013 कापीराईट सेमन्त हरीश ‘देव’
मेरी किताब से