अधीर होते हो
गीतिका
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क्यों बहुत ही अधीर होते हो।
और फिर चैन से न सोते हो।
काम खुद ही तमाम हो जाते।
और तुम व्यर्थ बोझ ढोते हो।
छा रहे देखिए घने बादल।
आप क्यों मन नहीं भिगोते हो।
अब निराशा लिए भटकना मत।
तुम स्वयं राह शूल बोते हो।
मिल रहेगा कहीं कभी अवसर।
क्यों परेशान आज रोते हो।
अब न बेचैन हो कभी रहना।
पाप जब खुद किए न धोते हो।
कुछ मिलेगा न लाभ व्याकुल बन।
स्वर्ण अवसर तमाम खोते हो।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य