अधीर मन खड़ा हुआ कक्ष,
अधीर मन खड़ा हुआ कक्ष,
दुपहरी में भानू बोला गवाक्ष ।
धीर धरो अथीर मन को तुम,
खामोशी सहन करो न तुम।
कब तक मन को तड़पायेगी ,
तन्हाईयांँ तुझे सदा रुलायेगी।
पीड़ा की गगरी भर न पाओगे,
किस किस को दु:ख सुनाओगे।
तमन्नायें होती नहीं कभी पूरी,
जिन्दगी बित जाती है अधूरी।
नदी की धार सी बहते जाना है,
आये अवरूद्ध काटते जाना है।
सीख ज्ञान का मिलते जाता है ,
सोचो अनुभव तुमको मिला है ।
अनुभव ही दिलाता है पहचान ,
इस ज्ञान को तुम भी मान ।