अधिकारी की संतुष्टि (हास्य-व्यंग्य)
अधिकारी की संतुष्टि 【हास्य व्यंग्य】
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अधिकारी को मैं संतुष्ट नहीं कर पा रहा था । अफसरों को संतुष्ट करना कोई आसान काम भी नहीं होता । जब तक वे स्वयं अपने आप से संतुष्ट न हो जाएँ किसी को भी उन्हें संतुष्ट कर पाना लगभग असंभव होता है। लेकिन मैं भला हार कैसे मान लेता ! जरा-सी तो बात थी ! अधिकारी का कहना था कि आप मुझे कोई प्राकृतिक चित्र खींच कर दे दीजिए ,मैं समझ लूंगा कि आप में संवेदना है । अधिकारी का यह कथन वैसे तो बहुत अजीब-सा था । भला एक प्राकृतिक चित्र खींचने से सरकारी काम होने का क्या मतलब ? लेकिन फिर भी मुझे अपना अटका हुआ काम निकलवाना था । मैंने सोचा जब अधिकारी कह रहा है कि एक प्राकृतिक चित्र खींच कर मेरे सामने ले आओ और मैं तुम्हारा काम कर दूंगा ,तब इतनी-सी बात पर यदि मामला अटका हुआ है तो ज्यादा सोचने में नहीं पड़ना चाहिए ।
मैंने मोबाइल उठाया । पार्क में गया। वहाँ देखा कि एक पेड़ पर तीन-चार चिड़िएँ चहचहा रही हैं । मेरी मन की मुराद पूरी हो गई । मैंने झटपट पेड़ का चिड़ियों सहित फोटो खींचा । प्रिंट निकाला और चित्र ले जाकर अधिकारी की मेज पर रख दिया। अधिकारी ने उड़ती हुई नजर चित्र पर डाली और पूछा “यह क्या है ? ”
मैंने कहा “प्रकृति का चित्र है ।”
अधिकारी ने कहा “जिस चित्र में आसमान नदारद है , उसे प्रकृति का चित्र कैसे कह सकते हैं ? ”
मैंने चित्र को गौर से देखा । सचमुच उसमें आसमान नजर नहीं आ रहा था।
” फिर भी पेड़ तो है /चिड़िएँ भी हैं। यह भी तो प्रकृति है ।”
अधिकारी ने अब तनिक रुष्ट होकर कहा “अगर यह संपूर्ण प्रकृति होती तो मैं आपसे कुछ नहीं कहता । लेकिन जब मैं कह रहा हूं कि आसमान का होना अनिवार्य है तब मैं आपके चित्र को स्वीकार नहीं कर सकता ।”
मैं समझ गया कि अधिकारी प्रकृति की अपनी व्याख्या कर रहा है और मैं उसकी व्याख्या को मानने के लिए मजबूर था। मैंने पुनः पार्क की तरफ अपने कदम बढ़ाए। इस बार पेड़ पर चिड़िया कोई नहीं थी । मैंने सोचा कोई बात नहीं , पेड़ तो है ।
मैंने पेड़ का फोटो आसमान की पृष्ठभूमि में खींचा ।.प्रिंट निकाला और अधिकारी की मेज पर लाकर आदर सहित उपस्थित किया । अधिकारी ने जैसी कि मुझे आशंका थी ,सवाल किया “चिड़िएँ कहाँ गईं?
मैंने कहा “मुझे क्या पता ? “अधिकारी बोला ” जब एक बार चिड़िएँ रिकॉर्ड में आ गईं, तब हम उन्हें आकाश की पृष्ठभूमि से अलग नहीं कर सकते ।आपको वही तीन चिड़ियाँ पेड़ पर बैठी हुई प्रस्तुत करनी पड़ेंगी ।”
मैं अधिकारी की चतुराई को अब समझ चुका था । वह मुझे टहला रहा था। मैंने कहा “तब तो आप यह भी चाहेंगे कि चिड़िएँ पेड़ पर ठीक उसी स्थान पर विराजमान होनी चाहिए जहाँ वह थोड़ी देर पहले थीं।”
अधिकारी मुस्कुराया । बोला “हम स्थान किसी का भी अपनी मर्जी से नहीं बदल सकते । आप प्रतीक्षा करें और चिड़ियों को पुनः पेड़ पर उसी स्थान पर आकर बैठने के लिए पर्याप्त समय दें । जब चित्र खींच लाएँ, तब मुझसे मिलें , मैं आपका काम कर दूंगा।”
अधिकारी की बुद्धि को मैं समझ रहा था। लेकिन कुछ किया भी तो नहीं जा सकता था। वह जो चाहे आदेश दे दे और हमारे पास उसे मानने के अतिरिक्त विकल्प बहुत कम होते हैं । ऊपर के अधिकारी नीचे के अधिकारी की बात को कभी नहीं काटते । उन से न्याय की आशा करना व्यर्थ है। रह गई अदालत ,तो वहां दस – पाँच साल से पहले कोई सुनवाई नहीं होती । मेरी विवशता यही थी कि मैं मोबाइल हाथ में लेकर पुनः पार्क में जाऊं और पेड़ पर चिड़ियों के ठीक उसी स्थान पर आकर बैठने की प्रतीक्षा करूँ जहां वह घंटा-दो घंटा पहले आकर बैठी थीं । समस्या यह भी थी कि चिड़िएँ भी वही होनी चाहिए जो इससे पहले बैठी थीं । अगर चिड़िया के एक भी पंख अथवा हाव-भाव में कोई बदलाव अधिकारी को महसूस हो गया तब वह काम नहीं करेगा। मैंने पूरा दिन पेड़ पर चिड़ियों के ठीक उसी स्थान पर आगमन की प्रतीक्षा में बर्बाद कर दिया लेकिन चि्ड़िएँ उस स्थान पर आकर नहीं बैठीं। या तो तीन इंच हटकर थीं या किसी अन्य डाली पर बैठी थीं। मेरे पास पुराना चित्र मौजूद था और मुझे हूबहू उसी चित्र की पुनरावृति आसमान की पृष्ठभूमि में चाहिए थी।
अब मेरे सामने मुश्किल अब यह थी कि मैं अधिकारी को संतुष्ट नहीं कर सकता था और जब तक मैं उसे संतुष्ट न कर दूँ वह मेरा काम नहीं करेगा । बड़ी मुसीबत है। मैंने पुनः अधिकारी के दफ्तर में जाकर उसे अपनी परेशानी बतानी चाही। अधिकारी के दफ्तर से बाहर एक सज्जन निकल रहे थे। मुझे मोबाइल हाथ में लिए हुए देखकर तथा प्रकृति का चित्र एक कागज पर फोटो के रूप में लिए हुए जब उन्होंने देखा तो पूछने लगे ” क्या आप भी आसमान की पृष्ठभूमि में पेड़ पर बैठी हुई चिड़िया का चित्र खोज रहे हैं ? ”
मैंने आश्चर्य से पूछा “आपको कैसे पता चला ? ”
वह.बोले ” मैंने चिड़िया ,पेड़ और आसमान की पृष्ठभूमि तीनों के रहस्य का पता लगा लिया है ।”
मैंने आश्चर्य से पूछा “कैसे ? ”
वह बोले “आप कार्यालय में बाबू से बात करिए । वह आपको समझा देगा ।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451