अद्वितीय गुणगान
तू अद्वितीय तू अनन्त अनन्य तेरी भक्ति,
अंर्तयामी सबका स्वामी, इसमें ना कोई श्योक्ति।
दीन दुखियों असहायों का रक्षक है तू,
तू आदि है न कोई अन्त, ऐसी तेरी शक्ति।।१।
तू अग्रगण्य तू अगणित, तू है अविनाशी।
तू अजन्मा तू अजर, तू सच्चा विश्वासी।
तेरा वास है, दुर्गम दुर्लभ और अगम,
तू अनाथों का नाथ है, तू सच्चा संन्यासी।।२।।
तू लौकिक तू पारलौकिक, माया तेरी अपरंपार।
तू निराकार निराश्रित, तू सब का है पालनहार।
परोपकारी जितेंद्रिय है तू, तू है बहुत दुर्लभ।
तू प्रियदर्शी वर्णनातीत, गुण गाए तेरा संसार।।३।।
तू सर्वज्ञ तू समदर्शी, सर्वव्यापी तेरा आधार।
तू सबका है एक हितैषी, ऐसा है तेरा व्यवहार।
तू ही सबका मालिक, तू ही सबका सहायक।
त्रिकालदर्शी सबका रक्षक, सभी से तुझको प्यार।।४।।
जो कोई तेरी महिमा गाए, मनवांछित वह सब पाए।
बिन तेरे ना कुछ हो सकता, तीनों लोक तेरा यश गाएं।
तेरा है सद्व्यवहार, तेरा न कोई है आकर।
ऐसे तेरे हैं विचार, उत्तम तेरा शिष्टाचार।।५।।
न होना तुम इससे विमुख, तभी तुम्हें मिलेगा सुख।
लगा ले बन्दे इससे डोर, चाहे दुष्यन्त कुमार हो चाहे और।
रचयिता विनाशक रक्षक, ये सब तेरे काम।
कोई कहे अल्लाह ईशा, कोई कहे राम।।६।।