अदृष्य मौत
अदृष्य मौत
घर के अन्दर जीवन है
घर के बाहर करोना है
सीख ले तू घर में रहना
जीने से हाथ क्यूँ धोना है
किसी एक की गलती से
माँ -बाबा भी मर जायेंगे
नन्हें मुन्ने वो प्यारे बच्चे
ढूँडने ‘पापा’ कहां जायेंगे
प्यारी सी वो माँ बच्चों की
बच गयी तो क्या करेगी
क्या खायेगी क्या पहनेगी
दिन दिन नयी मौत मरेगी
कैद करले खुद को घर में
चन्द रोज होगा ये मंजर
नहीं तो परिवार का जीवन
हो जायेगा बिल्कुल बंजर
पास इस आफत का तो
कोई भी ईलाज नहीं है
पड़ती ऐसे उसकी लाठी
होती जरा आवाज़ नहीं है
आज नहीं सम्भले तो फिर
जीवन भर ही रोना होगा
आँसुओं की उस शैय्या पर
फिर सबको ही सोना होगा
होता है कितना दुखदायी
किसी अपने को खोना है
घर के अन्दर ही जीवन है
घर के बाहर करोना है
सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र