अदबो इल़्म सी उर्दू
ज़शन ए उर्दू.
अदबो इल़्म सी उर्दू .
चैनो अमन की क़हक़शां है उर्दू .
हर मुक़्तिलिफ़ की गंगा जमुनी तहज़ीब हो उर्दू.
जबसे मालूमात हुआ की मीठी जबां है उर्दू.
लिखे हैं चंद अलफाज़ ‘कारीगर’ ने भी? इशके ए उर्दू.
ख्वाहिशें की हर सामयिन की जिक्र हो उर्दू
कहता हूँ कई मरतबा देखो कितना लज़ीज है उर्दू.
हुस्ने नूर हो या दरियागिली तंगहाली के हो कहीं चर्चे?
मखमली सी ईठलाती बलखाती जुबां जो उर्दू.
ना किसी से कोई भेदभाव ना कोई ख़ुदग़र्जी?
हर किसी का एहतराम करती सबका इस्तक़बाल हो उर्दू.
©किशन कारीगर