अतीत
अतीत
अंधेरे दीवारें के, बुनते हुए जालों सा
जीवन मेरा चुभता रहता, पैर में पड़े छालों सा ।।
कश्ती अक्सर सहती गिरती , किनारों के झोंकों से
मन का दरिया बहता पड़ता, दुःख के चंद हिचकोले से।।
अतीत
अंधेरे दीवारें के, बुनते हुए जालों सा
जीवन मेरा चुभता रहता, पैर में पड़े छालों सा ।।
कश्ती अक्सर सहती गिरती , किनारों के झोंकों से
मन का दरिया बहता पड़ता, दुःख के चंद हिचकोले से।।