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10 Dec 2018 · 1 min read

अटल पड़ाव

अटल पड़ाव
*********
जीवन का था नवीन सर्ग ।
घर में जैसे उत्सव-पर्व ।

नई हवाएं-नई फिजाएं ।
नई उमंग और आशाएं ।

नए चेहरों से मेल हुआ।
दिलों से दिल का भेद खुला।

हँसी-ठट्ठे और ठहाके ।
अच्छे गुजरे तीन दहाके।

विकसित हर्षित कुटुंब बना।
रूप उन्नत खिलता हुआ।

दिन में थी रौनकें खिलतीं ।
हंसी-खुशी शामें ढलतीं ।

अब उमंग विचारों में गुम।
चेहरे चिंता में गुम-सुम ।

मौसम बहुत बदल रहा ।
धीरे से दिन ढल रहा ।

आशाएं न लगती हर्षित।
परिवार का रूप संकुचित ।

यह जीवन का कैसा सर्ग ?
उत्कर्ष, विकास का उत्सर्ग !

जीवन का यह अटल पड़ाव ।
जमा-घटाव , उतार- चढ़ाव ।

।।मुक्ता शर्मा ।।

Language: Hindi
2 Likes · 513 Views
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