*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
भूप कांपने लगे परशु राम जी को देखकर।
सांसें फूलने लगी ऋषिवर का कूप देखकर।।
काल के गाल में जायगा-नज़र से नज़र हेरकर।
प्रार्थना जनक जी करें- सर और नज़रें झुकाकर।।
भूप मन में सोचें फ़ज़ल जीवित भागे यूं जां बचाकर।।
कुसंगति का बोल बाला देख लो जग घूमकर।
घरों के टूकड़े है करायें-कुलक्ष्मीं आई ब्याह कर।।
कोई ज्ञानी महाज्ञानी मुझे यह बताएं,
क्यों टूड़वाये स्वयंवर में धनुष तूड़वाकर।।
और भी तो ब्याह हुए हैं विधि की बताकर।
अज्ञानी जग में ज्ञानी जहां पर छोड़ते,
वहीं से ज्ञान गंगा तुम दिखलाओ बहाकर।।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झांसी बुन्देलखण्ड