अजीब सी है जिन्दगी
है कुछ
हलचल सी
जिन्दगी में
एक तरफ
मौत है तो
दूसरी तरफ
जीने की आशा
थिरकने सी
लगती है
जिन्दगी
जब कोई
अपना सा
मिल जाता है
जिन्दगी में
थम जाती है
हलचल
शरीर की जब
टूट जाता है
कोई अपना तब
थिरकती रही है
जब तक वो
घर आँगन में
रहा आबाद
घर संसार
सहती रही
दुख तकलीफ
करती रही
घर में नव संचार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल