अजब सी कशमकश
अजब सी कशमकश दिल में छुपाई
जब भी शाम ढली , तेरी याद आई।
ज़ेहन में उमड़ते तूफ़ान कैसे थामे
धड़कनें भी अब तो हुई है पराई।
इज्तिराब ए शौक हमसे न पूछिए
इंतज़ार में तेरे, मैंने हर रैन बिताई।
अश्कों से भरी आंखें,कैसे छिपाए
खुद ही लड़नी है अपनी लडाई
जीने के लिए बहुत बार मरना होगा
ये बात किसी बड़े न हमें न बताई।
सुरिंदर कौर