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12 Dec 2024 · 1 min read

अजब सी कशमकश

अजब सी कशमकश दिल में छुपाई
जब भी शाम ढली , तेरी याद आई।

ज़ेहन में उमड़ते तूफ़ान कैसे थामे
धड़कनें भी अब तो हुई है पराई।

इज्तिराब ए शौक हमसे न पूछिए
इंतज़ार में तेरे, मैंने हर रैन बिताई।

अश्कों से भरी आंखें,कैसे छिपाए
खुद ही लड़नी है अपनी लडाई

जीने के लिए बहुत बार मरना होगा
ये बात किसी बड़े न हमें न बताई।

सुरिंदर कौर

Language: Hindi
13 Views
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