अच्छा हुआ?
किसे सुनाऊँ दिल का किस्सा क्या हुआ?
जो भी हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ।
जख्म बन रहीं थीं थोड़ी सी सीने में
फिर मजा नहीं था पहले जैसा जीने में,
मैं अंदर-अंदर खामोशी में तड़प रहा था
जैसे कहती थी आड़ा तिरछा चल रहा था,
देखा जितना ख्वाब सब धुआं हुआ
जो भी हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ।
मैं डूब रहा था ख़लिश में उसको फ़र्क नहीं था
क्या तुमको भी लगता है जीना नरक नहीं था,
मैंने समझा दुःख दर्द में साथ निभाएगी
पर पता नही था मुझको ही वो खाएगी,
जब किया बग़ावत तो उसको गुस्सा हुआ
जो भी हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ।
मुझको इल्ज़ामो के घेरे में किया खड़ा
फिर कान पकड़ के माफ़ करो कहना पड़ा,
तुम बदल गए हो मनीष! ए मुझको दिख रहा है
जबसे लुटा है मुझको सबकुछ बिखरा है,
फिर बात बात में इज्जत का कचरा हुआ
जो भी हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ।
चलो अच्छा हुआ मैं मर के धुआं राख हुआ
दफन होता तो उसकी याद में कैसे सोता
उसे आदत मेरी हर चीज़ को अपनाने की थी
कब्र होता महज एक नाम वो उसका घर होता
सफरनामा ख़त्म होके खत्म रिश्ता हुआ।।
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