अच्छा ख़ासा तवील तआरुफ़ है, उनका मेरा,
अच्छा ख़ासा तवील तआरुफ़ है, उनका मेरा,
फिर क्यों जाने हाल मेरा,रिंदों से पूछा करते हैं।
वो ख़ुद ही उठकर गये थे, मिरी महफ़िल से,
जाने क्यों तन्हाई में मेरी ग़ज़ल गाया करते हैं।
इत्र सा महक जाता है सुनसान मिरी सांसों में,
जब कभी वो हमारे कूचे से गुज़रा करते हैं।
शायद न वो बेवफ़ा, न हम बेवफ़ा रहे होंगे,
कुछ वो बेबस, कुछ हम बेबस हुआ करते हैं।
जब भी गौर से निहारा है, आईने में ख़ुद को,
अक़्स बोला, अहले-दिल रौशन हुआ करते हैं।