अकेले ही चले जाना है
इक सफ़ेद चादर ओढ़ के जाना है
उस खूबसूरत से चेहरे को उसमें छूपाना है
शमशान तक सब को यहाँ बस आना है
आगे की मंजिल को खुद हमने ही पाना है !!
दाग जितने भी हों उस चादर पर
मिटाके जहान से चले जाना है
कहने वाले न जाने क्या क्या कह देंगे
हम को तो जीते जी…..साथ निभाना है !!
चेहरे को देख कर परिवार चूम देगा
सारे अरमानो को छोड़ वो अकेला चल देगा
साथी रह जायेंगे , कारवाँ बिछड़ जायेगा
खुदा का बुलावा कब आये….हंस के वो उठाना है !!
अच्छा था चला गया, मुझे तंग करता था
अच्छा हुआ, ..नाश हुआ इसका,.. न जाने
किस किस को हँसता, किस किस को रोता
छोड़ के हम को,.. तो इस जहाँ से चले जाना है !!
अजीत तलवार
मेरठ