अंधेरों का दौर है
**अंधेरों का दौर**
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अंधेरों का दौर है
उजालों की ओर है
नभ में नभचर उड़ते
द्विज झुंड का शोर है
बादल हैं गरज रहे
बरसात का शोर है
अंधेरा है छंट रहा
उजालों का जोर है
दुखों का साया हटा
मस्तियों का ठौर है
दोस्त है दुश्मन सा
दुश्मनी का घोर है
अपनों ने मुंह मोड़ा
बेगानों की झोर है
यह प्रेम का हसर है
हुए दिल के चोर हैं
विश्वास तो रहा नही
आकारिक बतौर है
आचरण दूषित हुए
चरित्र पतन दौर है
सुखविंद्र चितचोर है
प्रेम यहाँ सिरमोर है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)