अंधेरा छाया
पलक झुकी तो,
फलक तक ,
अंधेरा छाया
है कमी
कमी किसकी
समझ नही आया
दो जिस्म
एक जान थे
फिर क्या हुआ
हुआ यूं
एक के हिंसे खुशी
दूसरे के हीसे
गमों का घना साया
दूर हो कर
एक दूजे से
रहती आँख नम
नम आखों से
पलक झुकी तो,
फलक तक ,
अंधेरा छाया
नीरज मिश्रा ” नीर ” बरही मध्य प्रदेश