अंताक्षरी पिरामिड तुक्तक
अंताक्षरी पिरामिड तुक्तक
यह मुक्तक जैसे ही हैं , जिनका “आधार लय युक्त तुकबंदी है” , यह तुक्तक किसी छंद की मापनी या आधार पर नहीं होते है , यदि स्वाभाविक मिलान भी हो जाए तो , तब वर्तमान में प्रस्फुटित नव कविता( पिरामिड) में उनका नाम उपयोग उचित नहीं है
पिरामिड कविता नए नए आकार में लिखी जा रही है , जैसे धनुषाकार में भी सामने आई है
यहाँ हम पिरामिड तुक्तक बनाकर अंताक्षरी नियम का पालन करकें
” अंताक्षरी पिरामिड तुक्तक ” प्रस्तुत कर रहे है
(प्रारंभ के तुक्तक का अंतिम शब्द , अगला तुक्तक प्रारंभ होगा , व क्रमशा: दो मात्रा बढ़ जाती है इसी तरह क्रमशा: “पिरामिड अंताक्षरी तुक्तक” बढ़ते जाएगें )
आप किसी भी मात्रा से प्रारंभ हो सकते है
कम से कम 4 या 5 तुक्तकों से एक अंताक्षरी पिरामिड तुक्तक तैयार होता है |
~~~~~~~~~~~
( गा गा पदांत के ) अंताक्षरी पिरामिड तुक्तक
मात्रा 10
फूल नहीं पलते
खिलकर वह ढलते
जीवन भी ऐसा –
रुक जाता चलते |
12 मात्रा
चलते जाओ यारा ,
बनना सदा सितारा ,
आँसू पीना सीखों –
नहीं रहेगा खारा |
14 मात्रा
खारा जीवन मत जानो ,
अपने को अब पहचानो ,
किसी लक्ष्य को पाना है
तब बन जाओ दीवानो |
16 मात्रा
दीवानो की बात निराली ,
खुद ही बगिया के खुद माली ,
मस्त फकीरी में दिन रहते –
बजती रहती हरदम ताली |
18 मात्रा
ताली जीवन में जब आती है ,
मस्ती मन के अंदर छाती है ,
जीवन में भी कुछ खुश्बू आती
बगिया मन की वह महकाती है |
20 मात्रा
महकाती है जीवन को जब डाली ,
फूलों को भरकर लाता है माली ,
तभी सफल जीवन उसका हो जाता –
जब ईश्वर देने लगता उजयाली |
सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~
तुक्तक ( गाल पदांत के )
( 11 मात्रा)
जीवन के दिन चार ,
मत करना बेकार ,
लेना हरि का नाम –
होगा बेड़ा पार |
(13 मात्रा )
पार लगाता है ईश ,
कहलाता जो जगदीश ,
लेते हैं जब उसका नाम –
मिटती तब मन की टीस |
15 मात्रा
टीस कभी मत दिल में पाल ,
आ जाए तो उसे निकाल ,
निर्विकार मन रखना यार –
सदा मिटेगें जग जंजाल |
17 मात्रा
जंजाल यहाँ पर चारों ओर ,
सुने हाय का उठता हम शोर
लोग मचाते रहते है धूम –
सभी लगाते है अपना जोर |
( 19 मात्रा )
जोर लगाना जहाँ धर्म के बोल ,
दान दया के होते क्षण अनमोल ,
सुख मिलता जब अच्छे होते काम –
मन के भी मिट जाते है सब झोल |
~~~~~~~~~~~~~~~~
लगा के तुक्तक
9 मात्रा
देखा सब जहाँ ,
कलरव है यहाँ _
काँटे है लगे-
यहाँ न कुछ वहाँ |
11 मात्रा
वहाँ नहीं तुम रहो ,
वचन कथन मत कहो ,
मूर्ख जहाँ कुछ कहें –
बात न उनकी सहो |
13 मात्रा
सहो न कोई घात को ,
कटुता भरती बात को ,
नहीं पालिये कायरता –
अपने अंदर मात को |
15 मात्रिक
मात को न दिल से मानिए ,
सीख मिले यह सच जानिए ,
असर मात का कुछ दिन रहे –
जरा जीत का हल ठानिए |
सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इन अंताक्षरी तुक्तकों को आप आप किसी भी गण के पदांत में ले जा सकते है पर लय युक्त हो |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
धनुष पिरामिड
१-२-३-४-५-६-७-६-५-४-३-२-१=४९ वर्ण
हे
प्रिय
सुन लो
अब आओ
साज सजेगें
मधुर गूँजेगें
सुर लेकर गाओ
चाह सभी पाओ
अब मुस्काओ
मन लाओ
सुनाओ
हाल
भी
~~
सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~
सुभाष सिंघई