अंतहीन यात्रा
साया ही उसकी पहचान है
ठीक ठीक बता नहीं सकता
नाम भी कुछ याद नहीं
सामना भी हो जाये तो
पहचान पाएं शायद नहीं
है भी उसका एक सम्बोधन
नाम मात्रा में इतना सम्मोहन
पा लेने की एक तीव्र आशा
और व्याकुल सा ये अन्तः मन
भागता करने को पूरित
अपनी उत्कट क्षुधा पिपासा
भागा पूर्ण शक्ति के उपरांत
बैठकर अनुनय करता
नहीं मिलता फिर भागता
अकस्मात् गिर पड़ा हुआ क्लांत
क्षणिक पश्चात् उठ बैठा
निरीह नेत्र से हमने देखा
न था इसका दिशांत
बुझा सा मन हो गया
न है कोई काया
न है कोई साया
हठात !
दिख पड़ी काया की साया
मेरे आगे निकल गया
एक विशाल नर समूह
बनाकर एक व्यूह
मैं बहुत पीछे था छूट गया
मन जो था टूट गया
देखा मेरे भी एक पीछे था
किन्तु जाने क्यों आंखे मींचे था
प्रश्न था मेरा क्यों आंखे मींचे हो
प्रत्युत्तर कटु सत्य था
वह साये का भक्त था
उत्तर था साया नहीं
एक काया के पीछे था
हूँ तो मैं जन्मजात अँधा
किन्तु हूँ साये का खास बंदा
इसका मुझे अभिमान है
साया ही उसकी पहचान है – |
नेत्र बंद कर किया अभिनन्दन
साया के पुजारी को
नेत्र खुला, था ये विस्मय क्षण
पास चौड़ी जमीं थी
था वह बाँदा छन्न
जिसकी खोज को मैं भगा था
साक्षात् हुआ मैं धन्य
मैं अब अकेला था
भीड़ थी चली गयी
धूल बिखरी सी रह गयी
एक नाद किया ऐ लोगों
पीछे मत भागो
तुम्हारी इस काया में ही
बसा है वह साया
तजकर तुम सारी माया
खोजो अपने अन्तः मन में
मिल जायेगा वह पहचान
तुममें भी बसा साया का सम्मान है
साया ही उसकी पहचान है |