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28 Jan 2018 · 1 min read

अंगुलियाँ

तड़पती हैं
एक पिता की
सभी अंगुलियाँ
एक छोटा,नन्हा बालक
कब दौड़ता हुआ आए
और
झट से मुझे थाम ले
तपस्या करती हैं
दिन रात
पिता की अंगुलियाँ
इसी उद्देश्य से,
शायद विधाता ने
इसी निमित्त इनका
निर्माण किया है
चाहे जितनी भी गलतियाँ
बच्चे से हुई हों
अँगुलियों का स्पर्श
उसे पकड़ लेने मात्र से
पिता के भीतर जो
माँ छिपी होती है
वह धीमे धीमे
बाहर आने लगती है
पितृत्त्व के तह में
जो मधुर मातृत्त्व
पल-पल पलता रहता है,जो
पल-पल
अपनी इच्छाओं का
दमन कर,पोषता है
बच्चों की इच्छाओं को
वह धीमे से जागृत हो जाता है
इच्छाओं की पूर्त्ति हेतु
झट तैयार हो जाता है
मासूम,मुस्कुराते चेहरे को देखकर,
अँगुलियों पर छोटी अंगुलियाँ
नृत्य करती रहती हैं
मन के सारे भाव
व्यक्त करती रहती हैं
अत्यंत सहजता से
वही नन्हीं अंगुलियाँ
मिठाई की मिठास
चॉकलेट की मिठास
दुकानों में लगे खिलौनों के प्रति
आकर्षण या विकर्षण
सहज बता जाती हैं
और पिता बिना अपनी जेब देखे
अँगुलियों पर नाचती अँगुलियों
की भाषा समझकर
खिलौनों की ओर
दौड़ने को मज़बूर हो जाता है
अंगुलियों पर अंगुलियाँ
नाचती रहती हैं
पिता पर गर्व कर
हँसते,मुस्कुराते।
~~अनिल मिश्र,प्रकाशित

Language: Hindi
391 Views
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