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13 Jun 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

इस तरह हमसे करो पर्दा अगर लगता है
जिस तरह मौत से अपनी तुम्हें डर लगता है

ख़ैर कितनी भी करूँ पर उन्हें शर लगता है
शर मगर उनका हमे हुस्न-ए-नज़र लगता है

अपने माथे से हटाओ जो शिकन है वरना
धुँदला धुँदला सा जो लिक्खा है ख़बर लगता है

हमने सीखा नही दुनिया से ख़ुशामद करना
चापलूसी भी करो तुम तो हुनर लगता है

संग-ए-मरमर की तरह खुद को नुमाया मत कर
गर तुझे ताज-महल मौत का घर लगता है

कोई बचपन मे ‘फुज़ैल’ बात जो घर कर जाये
उम्र भर यानी उसी बात से डर लगता है

©फुज़ैल सरधनवी

2 Likes · 1 Comment · 288 Views
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