–हुनर सबको मिला है–रूपमाला छंद
रूपमाला छंद की परिभाषा और कविता–
रूपमाला छंद–
——————-इसमें चार चरण होते हैं।प्रत्येक चरण में चौबीस-चौबीस मात्राएँ होती हैं।प्रत्येक चरण की यति चौदह-दस पर होती है और चरणांत में गुरू लघु होना अनिवार्य है।
इसे मदन छंद भी कहते हैं।यह एक सममात्रिक छंद है।
मापनी-2122-2122-2122-21
रूपमाला छंद की कविता-
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आज में जीना फ़िकर तू,कर न कल की यार।
जो मिले ख़ुश हो रहो,तुम रहो बिन तकरार।
ग़म ख़ुशी चलते रहेंगे,सब डगर में साथ।
ज़िंदगी हरपल हँसेगी,सम रहे जब साथ।
तीर पर होकर खड़े तुम,कर न पाओ पार।
लख सरोवर का घना है,दूर तक विस्तार।
तुम चलो राहें चलेंगी,हो सवेरा यार।
जब मिलें मंज़िल हसीं वो,खो चलेगी हार।
रात-दिन सपने हँसेंगे,एक दिन हम ठान।
तब बने जग में हमारी,शान भी पहचान।
चाह हो सागर बने पथ,राम गाथा नाज़।
मेहनत से तो बने है,सुर सजी आवाज़।
चोंच तिनका नीड़ बनता,सीख दे उन्माद।
कूक कोयल की भरे ज्यों,उर घनी-सी दाद।
देख फूलों को बढ़े वय,देख कम हो ख़ार।
कामयाबी ख़ुश करे जब,तेज़ हो रफ़तार।
कोशिशें करते रहो तुम,जोड़ आशा-तार।
एकदिन लखना मिलेगा,मन सुखद आधार।
बीज बोया दे हमें ज्यों,पेड़ बन फल छाँव।
कर्म-फल नाता वही है,सोच रख उर ठाँव।
सुन हुनर सबको मिला है,एक हीरा मान।
चाँद-सा चमके अगर ले,तू इसे पहचान।
तू चला रास्ता सही गर,नाम चमके यार।
याद तेरी यूँ करें ज्यों,चाँद का दीदार।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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