हकीकत जानते हैं
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हकीकत जानते हैं हम,मगर बयां नहीं करते।
सब जाहिर है हम पर,मगर अयां नहीं करते।
कौन कितने दर्द सह कर, चुपचाप मर गया
बयां ऐसे किस्से ये खाली मकां नहीं करते।
तुम क्यूं बार बार अता करते हो शुक्रिया
कह तो रहे हैं हम कभी अहसां नहीं करते ।
बहुत गहरे से दफ़न,कर रखे हैं कुछ राज़
तभी हर किसी को,रग ए जां नहीं करते।
तुम ही इक बसे हो , दिल में मेरे ऐसे
तभी हम किसीको,दिल का मेहमां नहीं करते।
सुरिंदर कौर