सत्य की खोज
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/14b96dc10be0cf07485c736c6056bac1_2ff5adb7060613cc383de39bc082c8c9_600.jpg)
सत्य शाश्वत है
और शाश्वत के अस्तित्व पर संशय करना
स्वयं को धोखा देना है।
बिल्कुल वैसे ही जैसे
सूर्य चंद्र वायु जल के अस्तित्व पर
संशय करना।
सत्य वहीं कहीं छुपा रहता है
हमारे मन के किसी कोने में
परत दर परत नीचे दबा हुआ।
निकल नहीं पाता बाहर
गहरी अंधेरी अज्ञानता की सुरंग से ।
और भ्रम पूरी चका चौंध ले
विराजमान हो जाता है
मुकुट बनकर हमारे माथे पर
काजल बनकर हमारी आंखों में
और शब्द बनकर हमारे होठों पर।।
सत्य की खोज करनी है
तो खुरच खुरच उतारना होगा
इन परतों के ऊपर जमा हुआ अंधेरा।
ज्ञान का प्रकाश होते ही
चमकने लगेगा सत्य
दिनकर और रजनीकर की तरह
और पूरी हो जायेगी खोज
सत्य की !
****धीरजा शर्मा***