सच्चाई की राह में परवाह नहीं नाम की।
दिमाग आ गया ठिकाने मेरे,
लगा ठोकरें जब मुझे,
दुनिया है स्वार्थ से भरी पड़ी,
ये तो नहीं है मेरे काम की।
खुल गई है चक्षुएँ,
बढ़ चले हैं मेरे कदम,
नहीं डर है किसी काल की,
न हीं परवाह है बदनामी की।
सच्चाई की राह पर बढ़ूँ,
चाहे जिल्लत से ही जियूँ,
नहीं है मुझे कोई फिकर,
नहीं परवाह है अपने नाम की।
चल दिया हूँ सच्चाई के रास्ते,
नहीं परवाह मुझे किसी काम की,
पथ जो मैंने ली है पकड़,
सच्चाई की राह में परवाह नहीं नाम की।
…………. मनहरण