व्यंग्य क्षणिकाएं
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क्षणिकाएं
इन आँसुओं को
कौन समझाए
अब ये टपकते नहीं
सूखते हैं…..
जब रोती भी हैं आंख
रुमाल भीगता नहीं।
2
बहुत दिन से उनकी
खैर खबर नहींं मिली
अब खबरों में खैर
कहां रही।
3
इतना क्यों लिखते हो
जो उपमाएं देते हो…
दिखाई तो नहीं देती
4
पैरों से पायल गई
माथे से बिंदी…
मांग से सिंदूर…
फिर भी कहते हो
कुछ नहीं बदला।
5.
उमड़ते हैं भाव तो
कह देता हूं…
तुम भी यही कर रहे हो
मैं भी यही कर रहा हूं।
शब्द यात्रा।
सूर्यकांत द्विवेदी