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25 Jan 2017 · 1 min read

वृक्षों का दर्द

मेरी मुस्कुराती हरियाली में,
तू भी मुस्कुराया होगा
मेरी वजह से जो आयी बारिश
तू भी उसमें नहाया होगा।
मेरा अस्तित्व मिटाकर,
तूने अपना आशियाना बनाया,
मैं जल गया तेरे खातिर,
और तूने अपना खाना बनाया।
जिन उम्मीदों के खातिर
तूने दिन-दिन मेरा नाश किया,
अपने सपनो के खातिर,
तूने मेरा आँगन साफ़ किया।।
हर तरफ कर धुँआ-धुआँ,
आज तू निराश है,
आज खोज रहा तू थोड़ी साँसे,
क्या मानव यही तेरा विकास है।

Language: Hindi
Tag: कविता
151 Views
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