लोग हमसे ख़फा खफ़ा रहे

ताउम्र हम उनसे निभाते अहदे वफ़ा रहे।
लेकिन लोग हमसे ख़फा ख़फा से रहे।
जिंदगी की शाम तल्क इंतज़ार किया
वक्त ए रूखसत भी निभाते जफा से रहे।
न वो समझे हैं,न समझेंगे दिल की बात,
ग़म जुदाई के हमने,कितनी दफा सहे।
शामिल समझते रहे ,खुद को उस घर में
जिस के दरो दीवार से हमेशा रफा रहे।
कोई कर गया है ग़र बेवफाई तो ग़म नहीं
उम्र भर लेकिन हम तो हैं बावफा रहे ।
सुरिंदर