रौशनी तम निगल रही होगी
रौशनी तम निगल रही होगी
रात चुपचाप ढल रही होगी
देखकर अपनों के महल ऊँचें
मुफलिसी और खल रही होगी
हैं नज़र तो झुकी झुकी लेकिन
प्रीत दिल में मचल रही होगी
मुस्कुरा कर विदा किया होगा
आँख लेकिन सज़ल रही होगी
लग गले फिर पुरानी यादों के
नींद आँखों को छल रही होगी
देख कर जख्म ‘अर्चना ‘मेरे
पीर भी पी रही गरल होगी
डॉ अर्चना गुप्ता