रूह की चाहत🙏
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रूह की चाहत🙏
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व़क्त गुज़ार रहे हैं दो रूह रुहानी
वंश देख परलोक से सुखी दुःखी
दम्भभरी बात पकड़ नादानी में
धर्म कर्म नीति ना पहचानी में
बेजान छोड़ दिया बचपन को
जिस मिट्टी में जन्म लिया खेल
कूद पढ़ कुर्सी कठिनाई से पाया
अतीत विस्मृत हो बना धमण्ड़ी
चका चौंध दुनियां की दौड़ में
भूल गया पुरखों की तपस्या
क्या सोच कष्ट उठाया था
मेरी धरती खेतों की मांटी
धिक्कार दे बहुत कुछ कह रही
पर समझ किसी को ना आ रही
खेत क्यारी देख बैठे बैठा बाबा
कृषि का एक पहल धान रोपाई
खत्म कर कृषक फसल फल पाने
सेवा कर इंतज़ार में लगा रहता है
हर्ष प्रकट करने माँ पिता परिजन
पराये मददगार सभी साथ बैठ
दाल भात खीर पूड़ी पूड़ी बना
बैल हलधर की पूजा करता है
कितना मधुर मधु प्रेम सुहाना
निश्चल यारी याराना की नजराना
समय चक्र में टूट बिखर पड़ती
द्वेष कपट घमण्ड में अनजाना
अपने अपार मस्ती से मुस्काना
सोच विचार करें क्या …….. ?
यही जीवन जीना है ……….. ?
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तारकेशवर प्रसाद तरूण