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21 Mar 2017 · 1 min read

#### रिश्तों से भी कटकर कोई सजता है क्या,,,,,,,,

#ग़ज़ल /दिनेश एल० “जैहिंद”
2222 2222 2222

परिवारों से भी हटकर कुछ बनता है क्या !
रिश्तों से भी कटकर कोई सजता है क्या !!

इन ख़्वाबों की दुनिया में तुम क्यों खोये हो,,,
धरती से भी सुंदर कोई रिश्ता है क्या !!

तुम हो जिस दुनिया में खुशियाँ ही खुशियाँ हैं,,
और कहीं भी खुशियों का गुलदस्ता है क्या !!

परिवारों में मिलजुल कर हम-तुम रहते हैं,,,
पर रिश्तों की हत्या से कुछ मिलता है क्या !!

सारा जग ये खिलखिलाता इक गुलशन है,,
खूनखराबा करके अच्छा लगता है क्या !!

देश, समाज, मित्रों से केवल तुम प्यार करो,,
इन्हीं पर जां दो गैरों पर मरता है क्या !!

“जैहिंद” कहे रिश्तों का दुख बहुत हैं यहाँ,,
माँ-बापू से ज्यादा कोई सहता है क्या !!

दिनेश एल० “जैहिंद”
14. 02. 2017

169 Views

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