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7 May 2019 · 2 min read

रिश्तों की कम होती अहमियत ….

आज के इस बदलते युग में जहाँ रिश्तों की परिभाषा बदली है साथ साथ रिश्तों की अहमियत भी बदल गयी है ।जब एक बच्चे का जन्म होता है तभी से वह कई रिश्तों से जुड़ जाता है जैसे – माता -पिता , दादा -दादी ,बुआ,मामा आदि।जीवन में कुछ ऐसे भी रिश्ते होते है जो प्रेम व विश्वास कि आधार पर बनते हैं ,परंतु आज के आधुनिक युग में रिश्तों को एक समझौता बना दिया हैं।रिश्तों की अहमियत को लोग भूलते जा रहे हैं । लोग अपने परिवार के सदस्यों को समय ना देकर इंटर्नेट ,सोशल मीडिया को ज़्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं । हर रिश्ते की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है प्रेम व विश्वास जहाँ इन दोनो में कमी आने लगती है वहाँ रिश्तों में ख़ालीपन आना शुरू हो जाता है ओर ऐसे में एक -दूसरे से जीवनपर्यन्त जुड़े तो रहते है परंतु उसे बोझ की भाँति ढोते रहते है ।
कहा जाता है की सबसे पवित्र रिश्ता माँ-बाप का बच्चों से होता है । वे अपनी इच्छाओं का त्याग कर अपने बच्चों की इच्छाओं की पूर्ति करते है उन्ही को बड़े होकर अपने माँ -बाप का बुढ़ापा भारी लगने लगता हैं ओर उन्हें उन्ही के घर से निकालकर वृद्धाआश्रम में छोड़ देते हैं यदि घर में भी रह रहे हो तो उनको भी हिस्सों में बाँट देते हैं ।
आज सम्पत्ति के लालच में भाई-२ का दुश्मन हो रहा हैं । प्रायः देखा है पति अपनी ग्रहस्थी को छोड़कर बाहर प्रेम सम्बंध में रहकर अपनी पत्नी के सच्चे रिश्ते को अहमियत नहीं देते ।रिश्तों की अहमियत भूलने के साथ ही कुछ लोगों के द्वारा रिश्तों को कलंकित करने की ख़बरें भी आम हो गयी ।लोग रिश्तों का लिहाज़ भूलते जा रहे हैं ।अहम् व बदलतीं मानसिकता ने रिश्तों में कड़वापन घोल दिया रिश्तों में इतना बिखराव आ गया हैं उसे समेटना मुश्किल हो गया हैं
लोगों को यह सोचना चाहिए जो स्वयं से पहले तुम्हें प्राथमिकता देते है उनकी अहमियत को कैसे भूल सकते हैं ……..

“भूलों नहीं अहमियत रिश्तों की कभी
ये वो नाज़ुक डोर हैं जों जुड़ती नहीं फिर से”

Language: Hindi
Tag: लेख
9 Likes · 2 Comments · 3845 Views
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