ये उम्र के निशाँ नहीं दर्द की लकीरें हैं
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ये उम्र के निशाँ नहीं दर्द की लकीरें हैं
ये होठ मेरे सूखे नहीं
रिसते लहू की है परत
बस अंत की बाट जोहती
आंखों में समुन्दर ना देख
ये गुजरे समय का रेगिस्तान है
ये उम्र के निशाँ नहीं दर्द की लकीरें हैं
ये होठ मेरे सूखे नहीं
रिसते लहू की है परत
बस अंत की बाट जोहती
आंखों में समुन्दर ना देख
ये गुजरे समय का रेगिस्तान है