*** यादों का क्रंदन ***
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*** यादों का क्रंदन ***
यादों की नदी बहती है
बीती यादों का प्रवाह
भयावह रूप लिए
तोड़ती किनारों को यादों की लहरें
यादों की क्रंदन करती ध्वनि भी
मन के भावों को जख्मी करती
चलती हैं निर्बाध सी
मेरे अंदर उठ रही हैं यादों की
उफनित सी लहरें
और मैं निरीह सी खड़ी किनारे
मानों असहाय सी
मैं अचंभित सी निरीह सी
यादों में खड़ी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद