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9 Jan 2023 · 1 min read

मैं बुद्ध के विरुद्ध न ही….

मैं बुद्ध के विरुद्ध
न ही
युद्ध के विरुद्ध हूँ।

दधीचि सा परमार्थ है,
संतोष भरा स्वार्थ है।
मैं कर्ण मैं ही पार्थ हूँ,
निःस्वार्थ सा पुरुषार्थ हूँ।
मैं मर्म हेतु क्रुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध के विरुद्ध
न ही
युद्ध के विरुद्ध हूँ।

स्वभाव से कुछ उष्ण हूँ,
द्वापर का श्रीकृष्ण हूँ।
निष्काम व सकाम हूँ,
अवधेश परशुराम हूँ।
मैं धर्म से सम्बुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध के विरुद्ध
न ही
युद्ध के विरुद्ध हूँ।

दशमेश ताबेदार मैं,
महाराणा की ललकार मैं।
चाणक्य विदुर सूर हूँ,
ऊर्जा से भरा पूर हूँ।
मन से सहज प्रबुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध के विरुद्ध
न ही
युद्ध के विरुद्ध हूँ।

कहीं नहीं हो भ्रांति,
चहुँ ओर दिखे शांति।
तब मैं भी मन से शुद्ध हूँ,
पूरी तरह से बुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध के विरुद्ध
न ही
युद्ध के विरुद्ध हूँ।

अन्याय हो प्रचंड यदि,
व शत्रु अति उद्दंड यदि।
प्रहार फिर अखण्ड हो,
संहार भरा दण्ड हो।
सनातनी विशुद्ध हूँ।

मैं बुद्ध के विरुद्ध
न ही
युद्ध के विरुद्ध हूँ।

-सतीश शर्मा सृजन, लखनऊ।

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 39 Views
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