माता की महिमा
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एक हाड़-मांस की पुतली का , माता जिस दिन से नाम पड़ा
खुद ब्रह्म अवतरित होने को , द्वारे उसके कर बाँध खड़ा
राघव माधव मानव दानव , सबको धरती पे लाती माँ
निर्गुण जो सृष्टि चलाता है , उसको चलना सिखलाती माँ
खुदको विजयी करने हेतु , माता से सब बल पाते हैं
माता के चरणों में चौदह , भुवनों का वास बताते हैं
बाकी सब रिश्ता तो सबसे , जन्म बाद बन पाता है
अपितु माता संतान का नाता , सबमें नौ महीने ज़्यादा है
“शैलेश” तू मूरख शब्दों में , माता की महिमा गाएगा ???
जिस जननी का तुझपे ऋण है , तू उसका मोल चुकाएगा ???