महंगाई
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इतनी महंगाई कि जिंदगी झंड हो गयी।
किस्मत का दिया मानो दंड हो गयी।
चाय पीने की भी अब तो औकात नहीं
दूध साठ,पत्ती दो सौ,पचास खंड हो गयी।
पंडित से भी कुंडली,दिखाने को गया
बोला बेटा अब तो ये मूल गंड हो गयी।
बिजली का रेट आसमां को छूने लगा
दस मिनट ऐ सी चलाने से लगे ठंड हो गयी।
सिलेंडर 1150,आटा 40,अरहर 90 हुई
मोदीजी कुछ सोचो, महंगाई प्रचंड हो गयी।
सुरिंदर कौर