मजबूरी तो नहीं
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तुम्हारे फूल से चेहरे को जब छूता हूँ
इन बेरहम बेजान उँगलियों से
कुछ घबराई सी सकुचाई क्षण भर को तुम मुरझा सी जाती हो
खुद को सभालते समझाते पलट पड़ती हो चेहरे में फीकी सी हँसी ओढे
कि शायद मैं न बुरा मानू कि तुमको बुरा लगता है इस तरह मेरा छूना
मन थर्रा सा जाता है कहीं मजबूरी तो नहीं कोई मेरे जीवन मे तेरा आना
M.Tiwari”Ayan”