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16 Jun 2023 · 2 min read

मछलियां, नदियां और मनुष्य / मुसाफ़िर बैठा

नदियां हमें पानी देती हैं और
अपने पेट के पानी में पलते जलचरों को जीवन
जलचरों का घर होती हैं नदियां
जलचरों को प्रकृति से मिला है जीने के ढंग
इस जीने के ढंग में एक दूसरे के
जान के ग्राहक भी होते हैं जलचर
आहार शृंखला है जो प्रकृति में जीवों की
उसकी एक कड़ी नदी बीच भी बनती है
स्वाभाविक कड़ी
इस स्वाभाविक कड़ी को तोड़ता है मनुष्य
जैसे कि मछुआरे जलचर मछलियों की
जान का ग्राहक बन बैठते हैं
निर्दोष मछलियों का शिकार कर वे
उनकी हत्या कर खुद परिवार समेत उन्हें खाते हैं
अथवा अन्य मांसाहारी मनुष्यों को बेच देते हैं
जिससे मछुआरे को कैश या काइंड में
धन भी मिलता है।

मछलियों को स्वाद का सबब मानते मनुष्य को मछलियों के लिए कोई हमदर्दी नहीं होती
हां उन मनुष्यों को उन मछलियों के प्रति हो सकती है हमदर्दी
जिनका वे भक्षण नहीं करते
अपने घर दफ्तर में शीशे के भीतर उन्हें कैदकर
उनके बंदी जीवन को
तमाशा बना देते हैं
घर की शोभा और शान शौकत का
सबब मान बैठते हैं

मनुष्य के दया और क्रूरता के स्वभाव की
कोई तय प्रकृति नहीं होती
कई बार जीव हिंसा के विरुद्ध होता है कुछ मनुष्यों का स्वभाव
तो कई बार धर्म के रास्ते पर चलते हुए वह हो जाता है
क्रूर हिंसक जीवों के प्रति
बली का बकरा
इसी हिंस्र धार्मिक आहार व्यवहार से उपजा है
जीवों के प्रति दया भाव भी है कहीं धर्माचरण में
ऐसे ही धर्म मार्ग हैं बौद्ध, जैन, कबीरपंथ जैसे रास्ते
कुछ धर्म मार्ग हिंसा का लूपहोल उपलब्ध कराते हुए हिंसापसंद हैं।
नवरात्रि भर केवल शाकाहार
पर्व खत्म होते ही हर कसाई के यहां
लग जाती है जन्म जन्म के भूखों जैसी
भक्तों की कतार
जैसे कि
नौ दिन तक मांसाहार न कर पाने की कसक
नौ घंटे के अंदर ही पूरी कर ली जाए!

Language: Hindi
203 Views
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