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23 Oct 2016 · 1 min read

भिखारिन

छुक छुक
चलती रेल
जैसे जीवन रेल
चलती भिखारिन
दीन दशा ऐसी
कहती हो वैसी
अब मैं आम से
आप कहलाऊगी

निर्भर दया पर
भाँति भाँति के मुसाफिर
जीवन की रेल
जाती किस ओर
पग पग माँगती
देखती ऐसे
जैसे हो चोर
अभागिन भिखारिन

नहीं भिखारिन
किसी की माँ भी
राजनीति की पहचान
सभ्यता का आयना
देश की माँ आहत
उसकी क्या कहानी
रोयेगी जो आँखें
उसकी क्या जवानी

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
72 Likes · 358 Views
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