बढ़ रही हैं जो दिलों में दूरियाँ
बढ़ रही हैं जो दिलों में दूरियाँ
शोर अब करने लगी खामोशियाँ
देख उनको ये झपकते भी नहीं
बढ़ रही हैं नैनों की गुस्ताखियाँ
हार कर मत हार जाना तुम कभी
जीत भी लिखती हैं ये नाकामियाँ
बीत चाहें पल सुनहरे सब गए
साथ अब भी याद की परछाइयाँ
तब मुकम्मल होती है अपनी ग़ज़ल
वाह की मिलती हैं जब शाबाशियाँ
जानकर भी ये ,मिलेगी हार ही
खेलते सब ज़िन्दगी की बाजियाँ
‘अर्चना’ बेशक जमाना ये नया
पर नहीं रिश्तों में वो गहराइयाँ
डॉ अर्चना गुप्ता